Wednesday, March 25, 2009

चांदनी

आसमाँमे जगमगाती चांदनियाँ हो हजार,
हर दिल को क्यों रहे बस चांद काही इंतजार?

चांद का क्या कहना? कभी वह आए
तो कभी यूं ही चला जाए
फिर भी यह समाँ बना रहेगा
और आसमाँ चमकता रहेगा

रात के घने अंधेरोंको चांद भलेही दूर करे,
अपनी रोशनी पे वह क्यों इतना गुरुर करे?

हमने भी एक शाम गुजारी थी
किसी चांद के साए में
पर अब रात रोशन रहे
बस यादोंके दिये में

ऐ मेरे दोस्त, नामुमकिन हो ऐसी
इस जहाँ में कोई बात नही
मगर ये ना भूलना कभी
के हर जिंदगी एक रात नही..

Sunday, November 30, 2008

जिंदगी...

और इस मोडपे आकर
जिंदगी... कुछ ठहर सी जाती है जिंदगी...

रुकी रुकी सी सांसे
झुकी झुकी सी आंखे
और सहमे हुए दिलोंके धुंदलाते अरमानोंमें
जिंदगी... फिरसे जागना चाहती है जिंदगी...

तूटे हुए सपनोंके बिखरे पडे तुकडे
थरथरातें हाथोंसें समेटते हुए
जिंदगी... जख्मोंको भूलाना चाहती है जिंदगी...

नफरत की आगमें
जल जाते है नगमें
और बुझते हुए पलोंकी रुलाती है यादें
पर जिंदगी... फिर भी हसना चाहती है जिंदगी

Sunday, August 31, 2008

वो बस चलता रहा

अपनीही जिंदगीसे दूर

किसी मंझिल की तलाशमें



पर वो उससे रूठी

कुछ ऐसे, की वो बिखर गया...

अपनीही जिंदगीकी याद में

Tuesday, October 10, 2006

इतनी मौते देखली, के जिंदगीसे डर गए
अपनोंको उसने मारा,
और हम जिंदा रहकर मर गए...

मौतको तो हम समझ न पाए
हमसे क्या ऐसी खता हो गयी ?
अपनोंको जो बचा न पाए,
हमसे हैं जिंदगी खफा हो गयी...

कही फिर मौत को जिंदगीसे इकरार हो न जाए

और हमें फिर जिंदगीसे प्यार हो न जाए...

(Written on December 30th, 2004- After the Indian Ocean Tsunami)

Thursday, September 7, 2006

अमन का सफर

बडी कठीन सफर है,
हर मुष्किल हम पार करेंगे हसते हसते,
दोस्ती का हाथ आगे बढाए,
वे फिर आ रहे है,
अमन के रास्ते, अमन के वास्ते

कैसा अमन? कौनसे वास्ते?

कल न भूला है कोई,
हम जानते है, और वे भी समझ गए है,
के जवानोंके जीवन नही हैं सस्ते...


अब भी क्या समझेंगे सभी?

ये सरहदोंकी लकीरे,
नही बांटती है मुल्कको, और नाही दिलोंको...
बट जाती है तो सियासते...
और बंद हो जाते है अमन के रास्ते...
मर जाते है अमन के फरिश्ते...

अब हम एक क्यों न बने,

जब हवाएँ एकसी है...?
बारिश, नदियाँ, सागर एक है...
मिट्टी भी एक है, और इतिहास तो एकही है...

क्यों सपने देखते है हम
के फिर आएगी बहार
और फिर खुशियोंसे खिल उठेगी वादी?
जब डर मनमें हीं है
के ये ख्वाहिशें पह ना जाए आधी....